तुम सच को झूठ और झूठ को सच लिखो
आईने तोड़ के चेहरों को चमकाओ,
अंधों की बस्ती में सूरज को ढक लिखो।
इतिहास बदला, किरदार मिटाए,
सवालों को साज़िश का नाम बताए।
जो रोए उसे गुनहगार बनाओ,
जो लूटे शहर वही नवाब लिखो।
सवाल को साज़िश, सच को अफ़वाह,
हर बेचैन दिल को ख़राब लिखो।
तुम सच को झूठ और झूठ को सच लिखो,
हर जख़्म पर चमकीला कवर-पृष्ठ लिखो।
जो भूखा है उसे आलसी ठहराओ,
जो लुटेरा है उसे तुम रक्षक लिखो।
आँसू को तमाशा, दर्द को ड्रामा,
हर चीख़ पर टीआरपी का रक़्स लिखो।
जो सवाल करे उसे देशद्रोही,
जो लूटे खज़ाना उसे फ़र्ज़ लिखो।
जो सवाल उठाए उसे ग़द्दार ठहराओ,
जो बिक जाए वही ईमानदार लिखो।
तुम सच को झूठ और झूठ को सच लिखो,
हर जख़्म पर मीठा-सा मरहम लिखो।
पर याद रहे — ये रात हमेशा नहीं,
हर झूठ की उम्र भी ज़्यादा नहीं।
आज जो सच को अंधेरे में ढके हो,
कल वही सच तुम्हें आईना दिखाएगा कहीं।
पर याद रखना — ये दौर भी गुज़र जाएगा,
हर झूठ की नींव एक दिन ढह जाएगी।
आज जो लिखते हो बिके हुए शब्दों में,
कल वही कलम तुम्हें ही जलाएगी।
पर याद रहे — ये खेल अनंत नहीं,
हर झूठ की उम्र बेहिसाब नहीं।
आज जो सच को झूठ में ढाल रहे हो,
कल वही सच बनेगा हिसाब–किताब नहीं।
तुम सच को झूठ और झूठ को सच लिखो
Contributed By: Ajay Gautam Advocate: Lawyer / Author / Columnist
